
तू ढूँढता है जिसको, बस्ती में या कि बन मेंवो
published on 21 August
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तू ढूँढता है जिसको, बस्ती में या कि बन में
वो साँवरा सलोना रहता है, रहता है तेरे मन में ...
मस्जिद में, मंदिरों में, पर्वत के कन्दरों में (२)
नदियों के पानियों में, गहरे समंदरों में,
लहरा रहा है वो ही (२), खुद अपने बाँकपन में
वो साँवरा सलोना रहता है, रहता है तेरे मन में
तू ढूँढता है ...
हर ज़र्रे में रमा है, हर फूल में बसा है (२)
हर चीज़ में उसी का जलवा झलक रहा है
हरकत वो कर रहा है (२), हर इक के तन बदन में
वो साँवरा सलोना रहता है, रहता है तेरे मन में
तू ढूँढता है ...
क्या खोया क्या था पाया, क्यूँ भाया क्यूँ न भाया
क्यूँ सोचे जा रहा है, क्या पाया क्या न पाया
सब छोड़ दे उसी पर (२), बस्ती में रहे कि बन में
वो साँवरा सलोना रहता है, रहता है तेरे मन में
तू ढूँढता है ...
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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