
चरन चलौ श्री वृंदावन मग ,जँह सुनि अलि पिक कीर ॥
कर तुम करौ करम कृष्णार्पण अंहकार तजि धीर ।
मस्तक नवियौ हरिभक्तनको छाडि कपटको चीर ॥1||
स्रवन सदा सुनियौ हरि -जस-रस कथा भागवत हीर ।
नैना तरसि तरसि जल ढरियौ ,पिय मग जाय अधिर ॥2||
नासा तबलौ स्वासा भरियौ ,सुरता रखि पिय तीर
रसना चखियौ महा प्रसादै ,तजि बिषया -बिष नीर ॥3||
सुधि बुधि बढे प्रेम चरनन ,ज्यो तृष्णा बढे शरीर ।
चित्त चितेरे ,लिखियो पियकी ,मूरती ह्रदय कुटीर ॥4||
इंदि्य मन तन भजौ श्यामको ,बढॆ बिरह की पीर ।
जुगलप्रिया आसा जिय धरियो ,मिलिहै श्रीबलबीर ॥5||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
0 Comments: