
धुन- मिलती है ज़िन्दगी में
शंकर दयालु दूसरा तुमसा नहीं
देने से पहले तूँ ज़रा क्यों सोचता नहीं ||
भष्मासुर ने भक्ति से तुझको रिझा लिया
वरदान भष्म करने का दानव ने पा लिया
तुझको ही भष्म करने की पापी ने ठान ली || १ ||
गिरिजा की ज़िद पे था बना सोने का वो महल
महूरत कराने आया था रावण पिता के संग
सोने की लंका दुष्ट की झोली में डाल दी || २ ||
मंथन की गाथा क्या कहे क्या क्या नहीं हुआ
अमृत पिलाया देवों को और विष तूँ पी गया
देवों का देव " हर्ष " तूँ दुनियाँ ये जानती || ३ ||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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