
रे मन कृष्ण कृष्ण कहि लीजे ।
रे मन कृष्ण कृष्ण कहि लीजे ।
कृष्ण कृष्ण कहि-कहि के
जग में साधु समागम कीजे ।। 1||
कृष्ण नाम की माला लेके
कृष्ण नाम चित दीजे ।। 2||
कृष्णनाम अमरितरस रसना,
तृषावंत हो पीजे ।। 3||
कृष्णनाम है सार जगत में,
कृष्ण हेतु तन छीजे ।। 4||
रूपकुँवरि' धरि ध्यान कृष्ण को,
कृष्ण कृष्ण कहि लीजे ।। 5||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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