[1]
देह स्वप्न मात्र है। जब देह झूठी है तोह सब सामान दुनिया का झूठा है । नाम - धुन सच्ची है, सो उसे पकड़ो ।
[2]
अगर रोज रोज शब्द से सच्ची प्रीति करोगे तो मन के सब विकार छूट जायेंगे और दुनिया की चाहे , जो जन्म मरण का मूल है , मन से निकल जाएगी। मन सतगुरु से प्रीति करेगा ।
[3]
हर वक़्त सतगुरु के वचन के अन्दर रहना चाहिये ।
[4]
नाम के प्रताप से जमीन, आसमान और कुल चीजे पैदा हुई । सबकुछ नाम के बाद ही पैदा हुआ है । पहले नाम है । जिस जगह नाम होगा सब कुछ होगा । इसलिए पहले नाम को पकड़ना चाहिये । जब नाम मिल गया तो सबकुछ मिल गया । नाम को किसी वक़्त भी नही भूलना चाहिये ।
[5]
भजन की तरफ ख्याल जरुर रखो चाहिये । चित्त की प्रीति हर वक़्त (शब्द में) रखनी चाहिये ।क्योकि सब काम दुनिया का झुठा है, सो झुठा जान के किये जाओ । दिल से प्रीति भजन ही से रखनी है।
[6]
देह तो दुःख सुख का घर है , इसमे तोह दोनों ही जरुर आयेंगे । सो इसे अच्छा मान के भुगत ले । जो कई वर्षो का दुःख होता है , वह सत्संगी को थोड़े दिनों में ही भुगताया जाता है । सो किसी बात की चिंता न करना ।
[7]
'दुःख की घडी गनीमत जानो ' क्योकि दुःख - सुख सब खुद मालिक के हुक्म से आता है । फिर जब हुक्म से आता है तो बुरा क्यों मानना चाहिये ? मालिक हमारे पास है , हमे देखता है । अगर हमारा फायदा दुःख में होता है तो दुःख भेजता है ,अगर हमारा फायदा सुख में होता है तोह सुख भेजता है, दोनों ही हुक्म के अन्दर है ।
[8]
आपने लिखा की दर्शन की चाह बहुत रहती है , सो दर्शन का फल आपको मिलता जाता है । सतगुरु के दर्शन की चाह अगर मन में लगे तो इसके बराबर और कोई करनी नही है ।
[9]
लेना - देना अदा करने के लिए प्रेमी को पुरे सतगुरु अपने देह रूप से जुदा करते है, पर शब्द-धुन से जुदा नहीं करते ।
[10]
यह जो नोकरी या घर में काम-काज करते हो, यह भी सतगुरु का काम है । भजन और सुमिरन करना भी सतगुरु का काम है । जो कुल कारोबार है, तन , मन और धन , जो कुछ है , सबकुछ सतगुरु का है , मै कुछ नही हू । इसको यह समझना चाहिये की मै सिर्फ कारिन्दा (नोकर) हु । अपना आपाभाव बिलकुल छोड़ देना चाहिये ।
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