लडू गोपाल जी की भक्ति का फल

लडू गोपाल जी की भक्ति का फल

एक समय की बात है दो बुडी औरते पड़ोस में रहती थी , उनमे से एक लडू गोपाल के सेवा करते एवम एक जैन धर्म का पालन करती थी| गोपालजी की सेवा करने वाली बुडिया को अचानक किसी काम से ६ महीनो के लिए बहार जाना पड़ा , उसने सोचा लम्बा सफ़र है गोपालजी को कस्ट न हो इस कारन से उसने जैनी बुडिया को बोला , कि मुझे सफ़र पर जाना है सो क्या तू मेरे गोपाला को संभाल लेगी , जैनी बुडिया को गोपाल सेवा के बारे बता कर बुडिया यात्रा पर निकल पड़ी | अब जैनी बुडिया रोज गोपालजी को भोग लगा देती , एक दिन उसने सोचा के बुडिया के तो इसके कपडे भी बदलने को बोला था चलो आज इसके कपडे बदल दू | उसने जैसे ही कपडे बदलने के लिए गोपालजी की पुराणी पोशाक खोली क्या देखती है कि गोपाला के दोनों पाव मुड़ गए है (उसको लडू गोपालजी का स्वरूप पता ही नहीं था ) उसने सोचा की बुडिया ने कहा था कि जैसे छोटे बालक की सेवा करते है वैसे ही सेवा करनी है , पर मेने तो इनके इतने दीनो से मालिश ही नहीं की इसी कारन इनके पाव मुड़ गए है , अब तो जैनी बुडिया रोज ५ वक्त गोपालजी की मालिश करने लगी और प्रार्थना करने लगे के हे नाथ गोपाला के पाव सीधे हो जाये यात्रा समाप्त कर के बुडिया जब वापस आई और जैनी बुडिया के पास गयी और बोली बहन ला मेरा गोपाल दे दे , जैनी बुडिया गोपालजी को उठा कर ले आयी , बुडिया देखती है ये क्या गोपालजी के पाव सीधे कैसे तब जैनी बुडिया ने सारी कथा सुना दी , तब बुडिया ने बोला बहन तू तो धन्य है हमारे तो गोपालजी का रूप ही बांका (टेडा ) है पर तेरी भगती में रम कर इन्होंने ये रूप ले लिया ,
धन्य है तू
( Laddu gopal ji ki bhakti ka fal )

बोलिए श्री बांके बिहारी लाल की जय 
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