वहीं एक और कथा है। इसके अनुसार, सृष्टि के प्रथम मानव मनु तथा सतरूपा की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर परमेश्वर ने स्वयं को पुत्र के रूप में प्राप्त होने की मनोकामना-पूर्ति का वरदान दिया और दशरथ-कौशल्या के यहां चैत्र शुक्ल नवमी को राम के रूप में अवतार (जन्म) लिया। इसी तिथि को राम-नवमी के रूप में जाना जाता है।
जब भी किसी व्यक्ति का चरित्र देश काल की सीमाओं से ऊपर उठकर सार्वभौमिक और सार्वकालिक हो जाता है, तब समाज उसे आदर्श रूप में स्वीकार कर लेता है। ऐसे ही व्यक्ति पुराण, काव्य तथा इतिहास के नायक के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। कालांतर में उनके लोक-कल्याण के कार्र्यो के चलते उन्हें महापुरुष या अवतार मान लिया जाता है। ऐसे ही चरित्र के रूप में महर्षि वाल्मीकि और संत तुलसीदास के महाकाव्यों के नायक श्रीराम बने, जिन्हें समाज ने अंगीकार कर अपने जीवन से जोड़ा। यही कारण है कि रामकथा भारत के अतिरिक्त सुमात्रा, जावा, कोरिया तथा इंडोनेशिया में भी लोकप्रिय है। इंडोनेशिया में होने वाली रामलीलाओं में वहां के राजकुमार और राजकुमारियां भी भूमिका निभाते हैं।
त्रेता युग के नायक श्रीराम अनुकरणीय हैं। हर युग, काल में प्रासंगिक इनके चरित्र का अनुकरण निश्चय ही लौकिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों को जाग्रत कर जीवन और समाज को सुव्यवस्थित करता है। साथ ही सुख-दुख में सहनशीलता, नीति-अनीति में भेद, पाप-पुण्य का बोध तथा राजनीति और धर्मनीति का पाठ पढ़ाता है। माना जाए तो प्रत्येक परिवार के लिए राम-कथा आचार संहिता या संविधान की तरह है।
आज जहां परिवार बिखर रहे हैं, माता-पिता की भक्ति पुरानी बात हो चुकी है और मर्यादाओं की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं, ऐसे में राम का चरित्र ही ऐसा है, जो हमें इस कठिन समय में शिक्षा दे सकता है।
( Poranik kathao me Shri Ram ki mahima)
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