बिहारी घर मेरा बृज में बना दोगे तो क्या होगा।
मुझे वो बांसुरी अपनी सुना दोगे तो क्या होगा॥
अभी तुम सामने कभी, अभी तुम हो गए ओझल।
प्रभु यह बीच का पर्दा हटा लोगे तो क्या होगा ॥1||
मेरे गोपाल गिरिधारी, मेरे गोपाल बनवारी।
मुझे भी अपनी सखिओं में मिला लोगे तो क्या होगा॥२||
सुना है तुमने वृन्दावन में दावानल बुझाई थी।
मेरी भी आग हृदय की बुझा दोगे तो क्या होगा|| ३||
दयानिधि मैं तुम्हारे पास आने को तरसती हूँ।
मुझे खुद रास्ता अपना बता दोगे तो क्या होगा|| ४ ||
जय श्री राधेकृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणं
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