अपने विरह की आग बुझाए कहाँ कहाँ
तेरी नजर में जुल्फों में मुस्कान में
उलझा है दिल तो छुडाये कहाँ कहाँ
घनश्याम तुम्हे ढूँढने जाए कहाँ कहाँ ||1
चरणों की खाकसारी में खुद ख़ाक बन गये
अब ख़ाक पे ख़ाक रमाये कहाँ कहाँ
घनश्याम तुम्हे ढूँढने जाए कहाँ कहाँ ||2
जिनकी नजर देखकर खुद बन गये मरीज
ऐसे मरीज मर्ज दिखाए कहाँ कहाँ
घनश्याम तुम्हे ढूँढने जाए कहाँ कहाँ ||3
दिन रात अश्रु बिंदु बरसते तो है मगर
सब तन में लगी जो आग बुझाए कहाँ कहाँ
घनश्याम तुम्हे ढूँढने जाए कहाँ कहाँ
अपने विरह की आग बुझाए कहाँ कहाँ ||4
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