निसिदिन बरसत नैन हमारे

निसिदिन बरसत नैन हमारे

निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥

Nisidin barshat nain hamare



जय श्री राधे कृष्णा
Previous Post
Next Post

post written by:

Related Posts

  • अंखियां हरि–दरसन की प्यासी अंखियां हरि–दरसन की प्यासी। देख्यौ चाहति कमलनैन कौ¸ निसि–दिन रहति उदासी।। आए ऊधै फिरि गए आंगन¸ डा…
  • ऊधो, हम लायक सिख दीजै ऊधो, हम लायक सिख दीजै। यह उपदेस अगिनि तै तातो, कहो कौन बिधि कीजै॥ तुमहीं कहौ, इहां इतननि में सीखन…
  • जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै। यह ब्योपार तिहारो ऊधौ, ऐसोई फिरि जैहै॥ यह जापे लै आये हौ मधुकर, ताके उर …
  • कहियौ जसुमति की आसीसकहियौ जसुमति की आसीस। जहां रहौ तहं नंदलाडिले, जीवौ कोटि बरीस॥ मुरली दई, दौहिनी घृत भरि, ऊधो धरि लई…

0 Comments: