Maharaj Pahlad ne di thi Shikshya

Maharaj Pahlad ne di thi Shikshya

जय श्री कृष्ण बहुत ध्यान से  पढे...������������✨�� प्रहलाद महाराज ने अपने पिता दैत्य-राज हिरन्यकशिपू के पूछने पर सर्वश्रेष्ठ शिक्षा के रूप में नवधा भक्ति (९ प्रकार की भक्ति) का वर्णन किया (श्रीमद् भागवतम – ७.५.२३) :

१.श्रवणं: भगवान के पवित्र नाम को सुनना भक्ति का शुभारम्भ है | श्रीमद् भागवतम के पाठ को सुनना सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्रवण विधि है | श्रवण से प्रारम्भ करके भक्ति द्वारा ही मनुष्य पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान तक पहुँच सकता है (चै.च.आदि लीला ७.१४१)| परीक्षित महाराज ने केवल श्रवण से मोक्ष प्राप्त किया |

२.कीर्तनं: भगवान् के पवित्र नाम हरे कृष्णा महामंत्र का सदैव सतत कीर्तन करना -

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

चैतन्य महाप्रभु ने संस्तुति की है:

“कलह तथा कपट के इस युग में उद्धार का एक मात्र साधन भगवान् के नाम का कीर्तन है | कोई अन्य उपाय नहीं है, कोई अन्य उपाय नहीं है, कोई अन्य उपाय नहीं है |

निरपराध होकर हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने मात्र से सारे पाप-कर्म दूर होजाते हैं और भगवतप्रेम की कारणस्वरूपा शुद्ध भक्ति प्रकट होती है (चै.च.आदि लीला ८.२६) |

भगवान का पवित्र नाम भगवान के ही समान शक्तिमान है,अतः भगवान के नाम के कीर्तन तथा श्रवण-मात्र से लोग दुर्लघ्य मृत्यु को शीघ्र ही पार कर लेते हैं (श्रीमद् भागवतम ४.१०.३०) |

परम पूज्य श्री शुकदेव जी महाराज जी  ने कहाँ हे केवल कीर्तन से  भगवान के दर्शन प्राप्त किया जाता  हे |

३.स्मरणं: श्रवण तथा कीर्तन विधियों को नियमित रूप से संपन्न करने तथा अंत:करण को शुद्ध कर लेने के बाद स्मरण की संस्तुति की गयी है |

मनुष्य को स्मरण की सिद्धि तभी मिलती है जब वह निरन्तर भगवान के चरण कमलों का चिंतन करता है |

 भक्तियोग का मूल सिद्धांत है भगवान के विषय में निरंतर चिंतन करना, चाहे कोई किसी तरह से भी चिंतन करे | प्रह्लाद महाराज ने भगवान के निरन्तर स्मरण से मोक्ष प्राप्त किया |

४.पाद-सेवनम: भगवान के चरण कमलों के चिंतन में गहन आसक्ति होने को पाद-सेवनम कहते हैं | वैष्णव, तुलसी, गंगा तथा यमुना की सेवा, पाद-सेवनम में शामिल है | लक्ष्मी जी ने भगवान के चरण कमलों की सेवा कर के सिद्धि प्राप्त की |

५.अर्चनं: अर्चनं अर्थात भगवान के अर्चाविग्रह  की पूजा | अर्चाविग्रह  की पूजा अनिवार्य है | प्रथु महाराज ने भगवान के अर्चाविग्रह  की पूजा कर के मोक्ष प्राप्त किया |

६.वन्दनं: भगवान की वंदना या स्तुति करना | अक्रूरजी ने वंदना के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया |

७.दास्यम: दास के रूप में भगवान की सेवा करना | हनुमान जी ने भगवान राम की सेवा कर के मोक्ष प्राप्त किया |

८.साख्यं: मित्र के रूप में भगवान की पूजा करना | सखा शब्द प्रगाढ़ प्रेम का सूचक है | अर्जुन ने भगवान से मैत्री स्थापित कर के मोक्ष प्राप्त किया |  तथा

९.आत्मनिवेदनम: जब भक्त अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर देता है और हर कार्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए करता है, यह अवस्था आत्मनिवेदनम है |

आत्मनिवेदनम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बलि महाराज तथा अम्बरीष महाराज का है | आत्मसमर्पण करने के फलस्वरूप भगवान बलि महाराज के द्वारपाल बन गये तथा उन्होंने सुदर्शन चक्र को अम्बरीष महाराज की सेवा में नियुक्त कर दिया |

भक्ति सम्पन्न करने की नौ संस्तुत विधियाँ सर्वश्रेष्ठ हैं,क्योंकि इन विधियों में कृष्ण तथा उनके प्रति प्रेम प्रदान करने की महान शक्ति निहित है(चै च.अन्त्य लीला ४.७०) | 

भक्ति का फल जीवन का चरम लक्ष्य भगवत्प्रेम है (चै च.मध्य लीला २३.३) | श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा है: 

“जब मनुष्य श्रवण,कीर्तन से आरम्भ होने वाली इन नौ विधियों से कृष्ण की प्रेममयी सेवा करता है,तब उसे सिद्धि का पाँचवां पद एवं जीवन के लक्ष्य की सीमा भगवत्प्रेम की प्राप्ति होती है” (चै च.मध्य लीला ९.२६१) |

जब कोई व्यक्ति भक्ति में स्थिर हो जाता है, तो चाहे एक विधि को सम्पन्न करे या अनेक विधियों को, उसमे भगवत्प्रेम जागृत हो जाता है
(चै च.मध्य लीला २२.१३४) | फिर वह भी श्री कृष्ण को प्रसन्न कर सकता है, जिस प्रकार  उपरोक्त सभी ने किया है | ✨����������������������������������

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