
कितने गीत सुनाऊँ !
जी करता है अब अगीत बन कर ही तुझ तक आऊँ
जोड़-तोड़ कुछ शब्द झूठ-सच
गीत हार कितना भी दूँ रच
ओ अव्यक्त,अनाम,अनिर्वच!
क्या तुझको गा पाऊँ !||1||
नयन आवरण ज्यों दर्शन में
देह आवरण आलिंगन में
गीतों से तो और मिलन में
नव व्यवधान बनाऊँ||2||
पाना है निज अंतरतम में
तुझे शब्द के पार अगम में
तोड़ लेखनी, डूब स्वयं में मौन
न क्यों हो जाऊँ !||3||
कितने गीत सुनाऊँ !
जी करता है अब अगीत बन कर ही तुझ तक आऊँ
''जय श्री राधे कृष्णा ''
0 Comments: