सावन आयो री आली।

सावन आयो री आली।





सावन आयो री आली। 
कृष्ण कन्हैया झूला झूले बैठ कदम की डारी। 


वृन्दावन के नर और नारी, झोंटा दे सब बारी बारी। 
सखियाँ मंगल गीत सुनावे, दर्शन करके सारी॥1||


चम्पा मरवा और हजारी, फूल रही केशर की क्यारी। 
भर भर झोली पुष्प लुटावे, वृन्दावन की नारी॥2||


रिमझिम रिमझिम मेघा  बरसे, पवन चले मतवारी। 
रैन अंधेरी बिजुरी चमके, डरूँ उमर मोरी बाली॥ 3||


दादुर मोर पपईया बोले, बिना श्याम मोरी छाती छोले। 
चन्द्र सखी भज बालकृष्ण छवि है चरणन की दासी ॥4||


''जय श्री राधे कृष्णा ''


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