
नाशवान काया की कीमत ,कर दीन्हीं अनमोल |
घट -घट अविनाशी के कारण ,माटी रही है बोल ||
गुरु सिखाई ऐसी वाणी ,प्रभु जिसमें मेरा बोले ,
प्रेम की वाणी जड़ -चेतन में ,प्रेम सुधा रस घोले ,
प्रेम बिना निष्प्राण यहाँ सब ,प्रेम ही सबकी तोल ||१||
सोवत ,जागत में वो मेरा ,साथ न एक पल छोड़े ,
सच्चा साथी गुरु मिलायो ,अटूट ये रिश्ता जोड़े ,
मिल गयी बूँद सिंध में जैसे ,सब काया को घोल ||२||
सत् भी मुझमें ,चित्त भी मुझमें खुद में आनंद समायो ,
खोला राज मोक्ष का गुरु ने ,जीवन सफल बनायो ,
महिमा गाउँ गुरु ज्ञान की ,बजा -बजा के ढोल ||३||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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