मुट्ठी के रेत जाईयाँ समय सरक रही
published on 26 September
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धुन- स्वरचित
मुट्ठी के रेत जाईयाँ समय सरक रही चेत क्यों ना बैरी मनवा , बिजली कड़क रही |
बारीशां मं तूँ पतंग उड़ाव, उल्टा सीधा र भाया पेंच लड़ाव, हाथ न आयो कछु , तृष्णा भड़क रही || १ ||
कांचा सूं खेल कर घणो मुस्कायो, हीरो लुटायो पण समझ ना पायो, हाथ ना आयो कछु , माया फड़क रही || २ ||
भजन भाव तन्ने कदे ना सुहायो, नाम खुमारी कदे चखी ना चखायो, " नन्दू " इब सोच सोच कर छाती धड़क रही || ३ ||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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