
मेरे तो गिरिघर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सर मोर मुकुट मेरो पति सोई
तात मात भ्रात बंघु आपनो न कोई
छाड़ी दी कुल की कानि कहा करिहै कोई ||1||
संतन ढिंग बैठि बैठि लोक लाज खोई
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई ||2||
मोती मूंगे उतार वनमाला पिरोई
अंसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई ||3||
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई
दूध की मथनियाँ बडे प्रेम से बिलोई ||4||
माखन जब काढि लियो छाछा पिये कोई
भगत देख राजी हुई जगत देखि रोई ||5||
दासी मीरा लाल गिरिधर तारो अब मोही
मेरे तो गिरिघर गोपाल दूसरो न कोई. ||6||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
0 Comments: