
इसी जनम में इन आँखों से दर्शन तेरे कर पाऊँ,
गोकुल की मैं खाली मटकी भजनों से तेरे भर जाऊँ
सुना है कान्हा आज भी हर दिन तुम वृन्दावन आते हो,
राधा रानी और गोपिन संग नित ही रास रचाते हो !
ब्रज की घास बना दे मुझको, तेरे चरण पड़ें और तर जाऊँ ,||1||
यमुना जी की बन कर माटी धन्य करूँ इस जीवन को,
बन कर मटकी घर घर पहुँचुँ माखन मिश्री रखने को!
तेरे हाथों टूट के मोहन, अपने भाग्य पे ईठलाऊँ,||2||
ऐसा चीर बना दे मोहन लाज ढकूँ हर नारी की,
बनूँ सुदामा जी के तन्दुल भूख हरूँ बनवारी की!
मुख में तेरे जा कर कान्हादर्शन दिव्य मैं कर पाऊँ,||3||
बाँस बनादे मुझको गोविन्द मुरली बन तेरे कर आऊँ,
छूकर अधर तुम्हारे मोहन राधा जी के मनभाऊँ!
सुध बुध खो कर साथ में तेरे, तीन लोक दर्शन पाऊँ ||4||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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