
मोहन प्रेम बिना नही मिलते , चाहे कोटि करो उपाए
मिले न जमुना सरस्वती में , मिले न गंगा नहाये
प्रेम सरोबर में जब डूबे , प्रिय की झलक दिखाए ||१||
मिले न पर्वत में निर्जन में , मिले न वन भरमाये
प्रेम बाग़ में जब घुमे , तो हरी झट पधराये ||२||
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मिले न पंडित ज्ञानी को वो , मिले न ध्यान लगाए
ढाई अक्षर प्रेम पढ़े तो , प्रीतम नैन लगाए ||३||
मिले न मंदिर मूरत में वो , मिले न अलख जगाये
प्रेम बिन्दु दृग से जब टपके , तो तुरंत प्रगट हो जाए ||४||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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