मैया मोरी, मैं नही माखन खायो

मैया मोरी, मैं नही माखन खायो



मैया मोरी, मैं नही माखन खायो

भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहि पठायो .
चार पहर वंशीवट भटक्यो, सांझ परे घर आयो ||1||

मैं बालक बहियन को छोटो, छींको किहि विधि पायो .
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ||2||


तू जननी मन की अति भोली, इनके कहे पतियायो .
यह ले अपनी लकुटि कम्बलिया, तुने बहुतहि नाच नचायो ||3||

जिय तेते कछु भेद उपजिहै , जानि परायो जायो
“सूरदास” तब हँसी यशोदा, लै उर-कंठ लगायो ||4||

''जय श्री राधे कृष्णा ''


Previous Post
Next Post

post written by:

0 Comments: