ओ कान्हा, अब तोह मुरली की, मधुर सुना दो तान, 

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ओ कान्हा, अब तोह मुरली की, मधुर सुना दो तान,


                                        में हु तेरी, प्रेम दीवानी, मुझको तुम  दो 
पहचान,


जबसे तुम संग मैंने अपने, नैना जोड़ लिए है,
क्या मैया क्या बाबुल सबसे, रिश्ते तोड़ लिए है.
तेरे मिलन को, व्याकुल है ये, कबसे मेरे प्राण||1||




सागर से भी गहरी मेरे, प्रेम की गहराई, लोक, लाज,

कुल की मरियादा, तज कर में तो आयी.
मेरी प्रीती से, ओ निर्मोही, अब न बनो अनजान,||2||


जय श्री राधे कृष्ण



       श्री कृष्णाय समर्पणम्

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