🔸काम विकार - माना भोग विलास के अधीन होकर अपवित्र दृष्टि-वृत्ति और कृति बनाना । जिससे आत्मा की पवित्रता खंडित हो जाती है और उसका पतन हो जाता है।
🔸क्रोध- माना अत्यधिक आवेश में आ जाना और अपने को सही साबित करने के अभिमान वश दूसरों पर अपनी कड़वाहट जाहिर करना, किसी न किसी प्रकार से द्वेष या आवेश भरे संकल्पों को वाणी और कर्म में लाकर उसका प्रयोग दूसरों को दबाने के लिए करना । ये क्रोध ही है।
🔸लोभ- माना लालच। ये लालच कभी भी आत्मा को सच्चा नहीं रहने देती है और इसी विकार की वजह से व्यक्ति सबंधों में भी स्वार्थ ढूंढने लगता है । आत्मा इतनी स्वार्थी हो जाती है कि मानवता का भी त्याग कर देती है । लोभ सिर्फ धन का ही नहीं बल्कि इस देह से जुड़ी हुई सभी वस्तुओं से भी हो सकता है।
🔸मोह- माना attachment जो आत्मा की स्वतंत्रता को छीन लेता है जिसके कारण आत्मा निर्बंधन होते भी बंधन में बढ़ जाती है और परमात्म मिलन का अनुभव नहीं कर पाती। परमात्म स्नेह से दूर लौकिक संबंधों के विकार और शारीरक आकर्षण की रस्सियों में आत्मा स्वयं को बाँध देती है।
🔸अहंकार- माना जब आत्मा स्वयं को सबसे श्रेष्ठ मानने लगती है और सबके आगे अपनी श्रेष्ठता को साबित करना चाहती है। आत्मा का अहंकार उसे उलटे नशे की ऊंचाइयों में ले जाता है जहाँ से उसका पतन होना आरम्भ हो जाता है। अहंकारी आत्मा का शिक्षक समय होता है जो समय आने पर उसको अपने अहंकार के कारण पतन का सामना करना पड़ता है।
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