उसने अपने मंत्री से कहा- जाओ जाकर देखो इस गांव में कोई दर्जी है जो यह बटन ठीक कर दे। मंत्री गए और पता लगाया कि गांव में केवल एक ही दर्जी है। उस दर्जी को बुलाया गया।
बटन राजा के पास ही था। दर्जी केवल अपना धागा लेकर आया। दर्जी ने राजा के कोट का बटन लगा दिया।
राजा ने दर्जी से पूछा- इसके कितने पैसे हुए। तो दर्जी ने कहा कि इतने छोटे से काम के क्या पैसे। फिर राजा ने आग्रह किया कि तुम्हें तुम्हारे काम के पैसे लेने ही होंगे।
दर्जी मन ही मन सोचने लगा कि कितने पैसे मांगू मैं... इतने बड़े राजा से। पहले सोचता है कि ₹200 मांगता हूं फिर सोचता है कि अगर मैं ₹200 मांगू तो राजा कहेंगे कि इतने से काम के तुम ₹200 लोगे। जब राजा से ही इतने पैसे ले रहे हो तो बाकियों से कितने लेते होगे। जबकि बटन भी मेरा, तुमको लाने वाले मंत्री भी मेरे, तुम्हारा तो सिर्फ धागा था। वह मन ही मन सोच विचार करता है कि कितने पैसे मांगू, फिर सोचता है कि 200 नहीं 100 रुपए मांगता हूं। फिर और सोचता है कि थोड़े ज्यादा मांगता हूं। उसके मन में हलचल चल रही होती है कि कितने पैसे मांगू?
काम तो छोटा सा हैं परंतु राजा का कोट है। कभी सोचता है बिल्कुल नहीं मांगू, कभी सोचता है थोड़े मांगू, कभी सोचता है बहुत मांगू, परंतु बहुत सोच विचार कर अंत में वो कहता है कि जितना आपको ठीक लगे उतना दे दो।
अब राजा तो राजा है। उसकी भी अपनी मान और मर्यादा है, कुछ उसूल हैं। राजा मंत्री से कहता है- इस दर्जी को दो गांव दे दिए जाएं। यह सुनकर दर्जी आश्चर्यचकित रह गया।
दर्जी इतनी देर से सोच रहा था कि कितने पैसे मांगू, कम मांगू, ज्यादा मांगू, बिल्कुल नहीं मांगू। परंतु जब उसने सब कुछ राजा के ऊपर छोड़ दिया तो राजा ने उसको भरपूर कर दिया, दो गांव देकर।
शिक्षा- भगवान भी इस धरा पर आया है हमें सब कुछ देने। हम यदि उससे अभी भी छोटी-मोटी चीज़ें मांगते रहे तो क्या हम भरपूर हो पायेंगे? वो हमें भरपूर कर देगा... यदि हम सब कुछ उसके ऊपर छोड़ दें तो। उसके प्रति समर्पित हो जाएं अर्थात् जो तेरी इच्छा। तू जाने, तेरा काम जाने, सब कुछ तेरा...।
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