राजा अंबरीश भगवान विष्णु के महान भक्त थे. उनकी कीर्ति देवलोक तक में फैली थी. एक बार, अंबरीश ने एकादशी व्रत किया. एकादशी का व्रत अगले दिन यानी द्वादशी को तोड़ा जाता है.
व्रत तोड़ने के बाद साधुजनों को भोजन कराना होता है. द्वादशी को जब अंबरीश के व्रत तोड़ने का समय हुआ, वहां दुर्वासा ऋषि पधारे. अंबरीश ने दुर्वासा से पहले भोजन करने का आग्रह किया.
दुर्वासा ने अंबरीश का आग्रह स्वीकार कर लिया. उन्होंने अंबरीश से कहा कि वह स्नान करने नदी तक जा रहे हैं. जब तक वह स्नान करके नहीं आते, तब तक अंबरीश अपना व्रत न तोड़ें.
काफी समय बीत गया, लेकिन दुर्वासा नहीं आए. दुर्वासा बड़े ही मनमौजी ऋषि थे. कई बार वह यजमान को भोजन तैयार करने का आदेश देकर चले जाते थे और लौटकर आते ही नहीं थे.
व्रत तोड़ने का मुहूर्त निकला जा रहा था. गुरु वरिष्ठ ने अंबरीश से कहा कि वह व्रत तोड़ दें. गुरू के आग्रह पर अंबरीश ने तुलसी के पत्ते से उपवास तोड़ा और दुर्वासा की प्रतीक्षा करने लगे.
तभी दुर्वासा आ पहुंचे. उन्हें लगा कि अंबरीश ने उनका वचन नहीं रखा और उनके भोजन ग्रहण करने से पहले खुद कैसे भोजन ग्रहण कर लिया. जबकि अंबरीश ने भोजन नहीं किया था सिर्फ तुलसी का पत्ता खाकर व्रत तोड़ा था.
क्रोध से कांपते दुर्वासा ने अपनी जटा से एक भयंकर राक्षस पैदा किया और उसे अंबरीश का वध करने का आदेश दे दिया. अंबरीश दुर्वासा से क्षमा मांगते रहे लेकिन उन्होंने तो जिद पकड़ ली थी. हारकर अंबरीश ने नारायण का स्मरण किया. भगवान नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि भक्त अंबरीश का अहित करने वाले का वध कर दो. सुदर्शन चक्र ने राक्षस का वध करके अंबरीश की रक्षा की. राक्षस को पैदा कर अंबरीश का अहित करने की कोशिश तो दरअसल दुर्वासा ने की थी इसलिए अपने स्वामी के आदेश पर सुदर्शन चक्र दुर्वासा का पीछा करने लगा. भयभीत दुर्वासा जान बचाने के लिए भागे.
दुर्वासा, ब्रह्मा के पास गए. ब्रह्मा ने कहा कि सुदर्शन चक्र को रोकने का सामर्थ्य उनमें नहीं है. आप शिवजी से सहायता मांगें क्योंकि सुदर्शन उनका ही अस्त्र है.
दुर्वासा शिवजी के पास पहुंचे. शिवजी ने भी हाथ खड़े कर लिए. उन्होंने कहा कि मैंने तो सुदर्शन नारायण को दे दिया है. इसलिए अब वही उसके स्वामी हैं. सुदर्शन को तो श्रीहरि ही रोक सकते हैं.
शिवजी ने दुर्वासा को सुझाव दिया कि वह अंबरीश से क्षमा मांग लें. दुर्वासा ने अंबरीश से क्षमा मांगी. अंबरीश ने नारायण को याद किया और दुर्वासा की रक्षा के लिए प्रार्थना की. सुदर्शन श्रीहरि के पास लौट गया.(श्रीमद् भागवत कथा)
हालांकि शिव पुराण में कथा थोड़ी भिन्न है. शिव पुराण के अनुसार अंबरीश ने दुर्वासा को भोजन कराने से पहले व्रत तोडकर दुर्वासा का अपमान किया. इसलिए दुर्वासा ने अंबरीश को मारने का निर्णय कर लिया.
अंबरीश को बचाने के लिए श्रीहरि ने सुदर्शन चक्र भेजा लेकिन दुर्वासा के रूप में साक्षात शिव को पाकर वह रुक गया. उसी समय आकाशवाणी हुई.
शिवगण नंदी ने कहा- विष्णुभक्त राजा अंबरीश की परीक्षा लेने स्वयं शिवजी आए हैं. इसलिए अगर वह शिवजी से माफी मांग ले तो उसकी प्राण रक्षा हो सकती है. अंबरीश ने ऐसा ही किया और दुर्वासा उसे आशीर्वाद देकर गए.
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