यह जिन्दगी के खेल हैं भरमाने के लिये
चौरासी में घूम घूम कर पाया है अनमोल रतन
ऐसा मूरख हुआ दिवाना प्रभु का नहीं किया भजन
पाँच तत्व की देह बनी मिट जाने के लिये
यह जिन्दगी के खेल हैं भरमाने के लिये ||१
आठ मास नौ गर्भ में रहकर प्रभु से कीहना कौलकराल
भूलूंगा पल भर नहीं चाहे मुसीबत चहुँ हजार
हांड मांस की देह बनी सड़ जाने के लिये
यह जिन्दगी के खेल हैं भरमाने के लिये ||२
दुनिया में आते ही बन्दे अपना वादा भूल गया
मायापति के माया में फंस तू इतना क्यू भूल गया
कुछ भी न कीन्हा ख्याल हरि के पास जाने के लिये
यह जिन्दगी के खेल हैं भरमाने के लिये ||३
बचपन और जवानी खोई फिर भी तुमको चैन नहीं
हुआ बुढ़ापा काल आ गया फिर भी आँखें खुली नहीं
कर लो प्रभु से प्यार उसको पाने के लिये
यह जिन्दगी के खेल हैं भरमाने के लिये ||४
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