![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmunqiHLyU7RDayPNoTnw5klqk9k08ZdT3IuNK5azxnrrzLjqK_GIt7gjEWcsF-M42pKJtg86epOs3sGQ8mUsoaY2uG6WHqgrJoO0dklMSMK9TG5BcDyU24az2a9IGTYA8PaAZeLYVtzo/s1600/385251_473764242680566_818820288_n.jpg)
ऐ गोकुल के ग्वाले, ऐ रंगत के काले
तेरा मुस्कुराना गजब ढा गया।
है मधुहोश सारे, वो जमुना किनारे
ऐ बंशी बजाना गजब ढा गया।
हमे याद है हर शरारत तुम्हारी।
वो कंकर से फोडी थी मटकी हमारी।
वो चूपके से आना, वो कपडे चूराना
चूरा कर सताना गजब ढा गया।|1||
कदम के तले रास तुमने रचाया।
वो होठो से बंशी को तुमने लगाया।
वो प्यारी सी मुरली, कि धुन को बजाना
बजा कर नचाना गजब ढा गया।||2||
तेरा हर्ष तुझपे कुरबान हे कान्हा।
बडा तेरा मुझपे ऐसान कान्हा।
जमी से उठा कर, गले से लगाना
वो अपना बनाना गजब ढा गया।|3||
हे मधुहोश सारे, वो जमुना किनारे
ऐ बंशी बजाना गजब ढा गया।
''जय श्री राधे कृष्णा ''
0 Comments: