जहाँ तक जाती दृष्टि है ,

जहाँ तक जाती दृष्टि है ,



जहाँ तक जाती दृष्टि है ,
वहां तक फैली सृष्टि है,
सर्व मम रूप है |

मैं हूँ सब में और न कोई ,
मेरी ज्योति सब घट प्रगट होइ ,
ऐसा अद्भुत रूप ,
जाने कोई -कोई भूप ||१||

मुझसे उत्पन्न है संसारा ,
चंदा सूरज विद्घूत  तारा,
जगमगाती सृष्टि है,
 सारी आत्मदृष्टि है ||२||

इंद्र जाली जाल बिछाया ,
ईश जीव बन देखन आया ,
आप से सब आप ही फैला,
माया के भ्रम में भूला ||३||

''जय श्री राधे कृष्णा ''

 

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