जो भी आया बिक गया मोहन तेरे दरबार में ,
published on 17 September
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जो भी आया बिक गया मोहन तेरे दरबार में ,
भेद कुछ न रह गया बिकने और खरीददार में |
एक नजरें कर्म नटवर जिससे तुम्हारी हो गयी ,
उसको फिर चिंता न रही कोई संसार में ||१||
जिसके दिल और आँखों में मस्ती तुम्हारी छा गयी ,
वो ही शोहरत पा गया इस प्रेम के दरबार में ||२||
कैसा मीठा फल मिला हमको तुम्हारी याद में ,
दुनिया के सब नाते टूटे है इस तेरे प्यार में ||३||
गुणों को ठुकराया करते अवगुणों से प्यार है ,
ये ही तो आदत भली है मेरे कृष्ण मुरार की ||४||
उसे गरज क्या रही वीरान और चमन में ,
दुई का पर्दा उठ गया मिल गया करतार से ||५||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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