सब कहते हैं कि, रहता है तू कण-कण में|

सब कहते हैं कि, रहता है तू कण-कण में|



सब कहते हैं कि,
रहता है तू कण-कण में|
पर मेरा मोहन तो बसता है,
मेरे मन में |

वो मुरली वो मादक-सी मुस्कान तेरी,
बुलाने पे करता न आने में देरी |
जाने मुझे तो वो मुझसे भी ज्यादा,
मुझसे भी पहले पता है उसे मेरा इरादा ||1||

ह्रदय में ही तो है उसका घर ,
फिर क्यूं मै भटकूँ इधर-उधर|
सबसे बचाऊं दिल में छुपाऊं,
काले को मै काला टीका लगाऊं ||2||

''जय श्री राधे कृष्णा ''


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