प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो,समदरसी है नाम तुम्हारो, नाम
published on 18 September
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प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो,
समदरसी है नाम तुम्हारो,
नाम की लाज करो |
एक नदी एक नाला कहाय,
मैल हो नीर भरो |
गंगा में मिल कर दोनों,
गंगा नाम परो ||1||
काँटे और कलियाँ दोनों से,
मधुबन रहे भरो |
माली एक समान ही सीँचे,
कर दे सबको हरो ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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