किस मुख से तेरी महिमा गाऊँ
published on 18 September
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किस मुख से तेरी महिमा गाऊँ,
तू सत् पुरुष अविनाशी है |
चेतन घन अमल विमल निर्मल,
सत सदन परम सुखरासी है||
कोई अगुन कहे कोई सगुन कहे,
कोई निराकार साकार कहे
तू सब कुछ है और कुछ भी नहीं |
धुरपद धुरधाम निवासी है ||1||
नहीं मन ने थाह कभी पाई,
नहीं बुद्धि में आई चतुराई |
चित चिंतन कैसे करे तेरा,
तू द्वैत अद्वैत प्रकाशी है ||2||
मन बना बिहंगम मीन मकर,
मरकट बनकर कूदा अन्दर |
चींटी की चाल चला घट में,
कह उठा तू अगम उदासी है ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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