लौट कर व्रज में कैसे जाऊँ
published on 18 September
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लौट कर व्रज में कैसे जाऊँ
सखियाँ देख रही हैं छिपकर,
क्या मुँह उन्हें दिखाऊँ |
जब न रहा जीने का साधन ,
क्यों फिर व्यर्थ रहे यह जीवन |
सीता-सी ही ले दुखिया मन ,
भू में क्यों न समाऊँ ||1||
पर कब प्रिय से दूर गयी है ,
क्या न राधिका श्याममयी है |
यह व्रजलीला नित्य नयी है ,
रूठूँ, आप मनाऊँ ||2||
दुःख न करें, प्रभु! मेरे कारण ,
सदा एक हैं अपने जीवन |
गिरें नयन से बस दो जलकण ,
याद कभी यदि आऊँ ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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