
सतसंग नहि कियों गफलत में उमर सारी खो दई ,
हरी भजन न कीन्हो बातों में ऊमर सारी खो दई |
बिन सतसंग जगत में प्राणी पशुओं से भी खोटा
भार रूप धरनी पर रहवे पाप करे वे मोटा ||1||
दियो न कछु भी दान हाथ से लियो न हरी का नाम ,
मर करके वो घोडा बनता मुख में पड़े लगाम ||2||
उजला पहिरे कापड़ा रे पान सुपारी खाय ,
नारायण के भजन बिना वो जमपुर बाँधा जाय ||3||
झूठ कपट कर माया जोड़े ना खरचे न खाय ,
मरकर के वो अजगर बनता पड़ा पड़ा दुःख पाय ||4||
सरवर माहीं न्हावे धोवे भीतर कुल्ला करता ,
मरकर के वो मेढक बनकर टरक टरक करता ||5||
मानव तन अनमोल मिला है तनिक न व्यर्थ गवाओ ,
ज्ञान भक्ति की गंगा बहती सज्जन सब मिल नहाओ ||6||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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