
या गोकुल के चोहटे रंगराची ग्वालि॥
मोहन खेले फाग नैंन सलोनरी रंगराची ग्वालि॥ नरनारी आनंद भयो॥ सांवल के अनुराग॥1॥
दुन्दुभी बाजे गहगहे॥नगर कुलाहल होय॥ उमङयो मानस घोख को॥भवन रह्यो नहीं कोय॥2॥
डफ बांसुरी सुहावनी॥ताल मृंदग उपंग॥
झांझ झालरी किन्नरी॥आवज कर मुख चंग॥3॥
उतही समाज गोपाल की॥बलयुत नंदकुमार॥
उत गोपी नव जोबना॥अंबुज लोचन चारू॥4॥
गारी देत सुहावनी॥प्रमुदित गोप कदंब॥
युवति यूथ एकत्र भये॥गावत मदन विटंब॥5॥
रत्नजटित पिचकाईयाँ॥ कर लिये गोकुलनाथ॥
तकि छिरकें वनिता वृंद को॥जे राधा के साथ॥6॥
केसु कुसुम निचोई कें॥भरत परस्पर आनि॥
मृगमद चोबा कुंकुमा॥चारु चतुर सब सानि॥7॥
सुरंग गुलाल उङावही॥बूका बदन धूलि॥
चढि विमान सुर देखहीं॥देह दशा गई भूलि॥8॥
खेल मच्यो अति गह गह्यो॥चितबत ब्रजवधू धाय॥
राधा रसिक गोपाल की॥आसकरन बल जाय॥9॥
जय श्री राधे कृष्ण
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