जपा कर जपा कर, हरिओम तत्सत

जपा कर जपा कर, हरिओम तत्सत



जपा कर जपा कर, हरिओम तत्सत
हरि ॐ तत्सत, हरि ॐ तत्सत।

जो दुष्टों ने लोहे का, खम्बा रचा था।
तो निर्दोष प्रहलाद, क्यों कर बचा था॥
करी थी करी थी, करी थी करी थी।
विनय ऐक स्वर में। हरि ॐ तत्सत.||1||

कहो नाथ शबरी के, घर क्यों थे आये।
जो आये तो क्यों बेर, जूठे थे खाये॥
जुबां पर जुबां पर, जुबां पर जुबां पर।
यही था हृदय में। हरि ॐ तत्सत..||2||

लगी आग लंका मे, हलचल मची थी।
तो कुटिया विभीषण की, क्यों कर बची थी॥
लिखा था लिखा था, लिखा था लिखा था।
यही नाम उस पर। हरि ॐ तत्सत...||3||

सभा मे खड़ी, द्रोपदी रो रही थी।
लज्जा में आंसुओं से, मुख धो रही थी॥
पुकारा पुकारा, पुकारा पुकारा।
यही नाम दिल से। हरि ॐ तत्सत.||4||

हलाहल का प्याला, मीरां ने पिया था।
तो विष को भी अमृत, क्यों कर दीया था॥
दीवानी दीवानी, दीवानी दीवानी।
मीरां इस नाम पर। हरि ॐ तत्सत...||5||

''जय श्री राधे कृष्णा ''


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