
नाथ कैसे गज को फंद छुडायो। मोही सुन सुन अचरज आयो।
गज और ग्राह लड़े जल भीतर, लड़त लड़त गज हारयो।
जौ भर सूँड रही जल बाहर, तब हरी नाम उचारयो॥ 1||
शबरी का बेर सुदामा का तांदुल, रुच रुच भोग लगायों।
दुर्योधन का मेवा त्याग्या, साग विदुर घर खायो॥2||
पैठी पाताल काली नाग ने नाथ्यो, फन फन नृत्य करयो।
गिरि गौवर्धन कर पर धारयो, गिरधर नाम धरायों॥3||
असुर बकासुर ने थां मारयो, दावानल पान करायों।
खंभ फाड़ हिरणाकुश मारयों, भक्त प्रह्लाद बचायो॥4||
अजामिल गिद्ध गणिका ने तारी, द्रोपदी को चीर बढ़ायो।
पय पान कर पूतना मारी, कुब्जा रो रूप संवारियों॥ 5||
महा भारत का रणखेता मे। बेल पाण्डव की आयो।
द्रोणसूत अश्वथामा रा बाण सूं, उत्तरा को गर्भ बचायो॥ 6||
सब सखियाँ मिल नेह को बंधन रेशम गाँठ बंधायों।
छुटयो नाही राधा को संग, पुरबलो प्रेम निभायो॥ 7||
योगी ज्यांकों ध्यान धरत है, प्रेम के वश भजी आयो।
सूर कहे प्रभु तुम्हरे मीलन को, मोही भरोसों आयो॥ 8||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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