
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे निर्धन के घर भी आ जाना
जो रूखा सुखा दिया हमें उसका भोग लगा जाना
ना छत्र बना सका सोने का ना चुनरी घर मेरेतारो जडी
ना पेडे बर्फी है मॉ ,श्रदा है नयन बिछाय खडी
इस अर्जी को ना ठुकरा जाना||1||
जिस घर के दिए में तेल नही वहॉ ज्योति जलाउ मैं कैसे
मेरा खुद ही बिछोना धरती पर तेरी चौकी सजाउ मैं कैसे
जहॉ में बैठा वही बैठ के मॉ बच्चो का दिल बहला जाना||2||
तु भाग्य बनाने वाली है मॉ मैं तकदीर का मारा हूँ
हे दात्री सम्भालो भिखारी को आखिर तेरी आंखाका तारा हूँ
मै दोषी तू निर्दाष है मां मेरे दोषो को तू भुला जाना||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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