
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय रस पीना क्या
काल सदा अपने रस घोले ,
ना जाने कब सर चढ़ बोले।
हरी का नाम जपो निसवासर,
अगले समय पर समय ही ना॥1||
भूषन से सब अंग सजावे,
रसना पर हरी नाम ना लावे।
देह पड़ी रह जावे यही पर,
फिर कुंडल और नगीना क्या॥2||
तीरथ है हरी नाम तुम्हारा,
फिर क्यूँ फिरता मारा मारा।
अंत समय हरी नाम ना आवे,
फिर काशी और मदीना क्या॥3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
0 Comments: