
राधे मोहन वृन्दावन में आज भी रास रचाते है
ब्रिज वासी रसिक जन हमको ये भेद बताते है
रूप अलौकिक प्रेम अलौकिक मिलके मधु बरसाते है
भक्तों के आग्रह पर मधु भीगे अधरों पर बंसी धरते है
कंकन कुंडल करधनी पायल कैसा सुरीला निनाद करते है
ब्रिज मंडल में उतरा चन्द्रमा रहती है यहाँ सदा पूर्णिमा
धरती के सब तीर्थ यहाँ से ज्योति निरंतर पाते है ||1||
वो पूर्ण परमेशवर जिनका वेद पुराणों ने भेद ना जाना
कैसा रूप स्वभाव है कैसा अब तक किसी ने ना पहचाना
इन्हें त्रिभुवन करे प्रणाम रे ढूंढे ना मिले जिन्हें श्याम रे
सेवा कुञ्ज में श्री राधा के हस हस चरण दबाते है ||2||
सब सखियों के कृष्ण है अपने मन में किसी के विषाद नहीं कोई
दर्शन पाकर हर कोई बोले दर्श से बडके प्रसाद नही कोई
हर गोपी बनी यहाँ राधिका रासेश्वर की आराधिका
सबको अंग लगाकर माधव सबकी आस पुजाते है ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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