
सरस किशोरी, वयस कि थोरी, रति रस बोरी, कीजै कृपा की कोर।
साधन हीन, दीन मैं राधे, तुम करुणामई प्रेम-अगाधे,
काके द्वारे, जाय पुकारे, कौन निहारे, दीन दुखी की ओर।|1||
करत अघन नहिं नेकु उघाऊँ, भरत उदर ज्यों शूकर धावूँ,
करी बरजोरी, लखि निज ओरी, तुम बिनु मोरी, कौन सुधारे दोर।|2||
भलो बुरो जैसो हूँ तिहारो, तुम बिनु कोउ न हितु हमारो,
भानुदुलारी, सुधि लो हमारी, शरण तिहारी, हौं पतितन सिरमोर।|3||
गोपी-प्रेम की भिक्षा दीजै, कैसेहुँ मोहिं अपनी करी लीजै,
तव गुण गावत, दिवस बितावत, दृग झरि लावत, ह्वैहैं प्रेम-विभोर।|4||
पाय तिहारो प्रेम किशोरी!, छके प्रेमरस ब्रज की खोरी,
गति गजगामिनि, छवि अभिरामिनी, लखि निज स्वामिनी, बने कृपालु चकोर॥4||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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