मन के तार तुझी से बाँधे
published on 11 September
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मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक
हम अलग न होंगे, राधे!
साज भिन्न हो समय-समय का
राग न छूट सका नव वय का
सुर अब भी है वही हृदय का
लाख जोग-जप साधे ||1||
वेणु बजाता वंशीवट पर
फिरता हूँ नित यमुना-तट पर
तुझे देखता हूँ पनघट पर
नयन खोलकर आधे ||2||
फिर-फिर वृन्दावन में आके
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
प्रिये हमारी प्रेम-कथा के
पृष्ठ रहे जो सादे ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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