रूठ के मो से कान्हा, मुख नाहीं मोड़ो रे
published on 11 September
leave a reply
रूठ के मो से कान्हा, मुख नाहीं मोड़ो रे
प्रीत का बंधन कान्हा, बाँध के ना तोड़ो रे
तुमसे बिछुड़ कर,मैंने ये जाना रे
तुम बिन मेरो, कोई नहीं कान्हा रे ||1||
.
कब से खड़ी हूँ पथ में, पलकें बिछाए
काश मेरे घर,इक बार श्याम आयें ||2||
तुम बूँद अमृत की , मैं भई प्यासी
तुम मेरे प्रीतम , मैं तोरी दासी ||3||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
0 Comments: