कान्हा रे तू राधा बन जा,भूल पुरुष का मान

कान्हा रे तू राधा बन जा,भूल पुरुष का मान



कान्हा रे तू राधा बन जा,भूल पुरुष का मान,
तब होगा तुझ को राधा की,पीड़ा का अनुमान रे,
कान्हा रे . . . कान्हा रे . . .

तू चंचल है तू क्या जाने नारी मन की बात,
क्यूँ रहती है राधा के दो नयनों में बरसात,
तू ही जब यह पीड़ न जाना, फिर क्या तेरा ज्ञान ||1||

प्रेम दिवानी राधा को तू माखन से ना तौल,
राधा का मन टूट गया तो क्या होगा रे बोल,
देर नही है तज दे कान्हा अपना ये अभिमान ||2||

तेरे कारण राधा का ये हाल हुआ रे श्याम,
राधा के अधरों पे रहता पल पल तेरा नाम,.
ऐसे तो न बन राधा के दुख से तू अंजान ||3||

''जय श्री राधे कृष्णा ''
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