यमुना-तीरे आते-जाते छवि हरेक दिखायी

यमुना-तीरे आते-जाते छवि हरेक दिखायी



यमुना-तीरे आते-जाते
छवि हरेक दिखायी
तू ने ऐसी रीत निभायी

माखन से लेकर चित्त चोरी
तुम ने कर दिखायी
कब किसकी मानी है तू ने
की है ऐसी ठिठायी ||1||

ऋतु जैसा बदले तू हरक्षण
सांच छवि न दिखायी
अब तो मनो निशदिन यूँ ही
सारी उमर गंवायी||2||

जितनी डूबी रस में पायी
उतनी गहरी खायी
सब कहते, “मुझ पर तेरी
जादूगरी छायी”,||3||

'जय श्री राधे कृष्णा ''

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