
'' मानव जीवन की दुर्लभता ''
८४ लाख योनियो में भटकते हुए अपार दुखो को सहने के बाद जीव को असीम करुणाकर भगवान की अपार कृपा से मानव योनी प्राप्त होती है|
परमार्थी साधना करके मोक्ष प्राप्त करने का यही एक मात्र अवसर है . ऐसे दुर्लभ जीवन को पा कर भी जो सचेत नाही होता ,उसका जीवन सार्थक नही रह जाता है |
केवळ दान ,पुण्य करने और कर्मकांड की बाहरी क्रियावू से जीवन सार्थक नही
होता,क्योकि इन कर्मो से अधिक से अधिक स्वर्ग की प्राप्ति हो सक्ती है वह भी
केवळ अल्प समय के लिये ही मिलता है और अंत में जीव को पुनः विभिन्न योनियो
के आवागमन चक्र में फसणा पडता है |अतः भगवन्नाम जप ही एक ऐसा सरळ
और सात्विक (मार्ग) है ,जो मानव जीवन को सफल और पवित्र बनाता है |
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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