
काजल भगवत प्रेम का , नयनो मे लूं डार ।
कंठ मे भक्ति की माला हो , प्रभु सुमिरन का हार ।।
भक्त कदम वहाँ पर पड़े , जहाँ प्रभु का द्वार ||1||
नयनों को बस आस रही , हरि दर्शन की आस ।
प्यास लगे जब कंठ को , प्रभु जल की हो प्यास ||2||
हाथों मे जब भी मिले , प्रभु चरणों के फूल ।
हाथ करे चरणों की सेवा , माथे चरणन धूल ||3||
कानों मे जब भी पड़े , हो सत्संग का सार ।
प्रीत करूँ प्रभु की भक्ति से , ये है सच्चा प्यार ||4||
अधरों पर हर पल धरूं, प्रभु सुमिरन के बोल ।
जिहवा को पल पल मिले , हरि अमृत का धोल ||5||
''जय श्री राधे कृष्णा '
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