
ऊधौ मन न भए दस-बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग को अवराधै ईस ||1||
इंद्री सिथिल भई केसव बिनु ज्यों देही बिनु सीस ||2||
आसा लागि रहत तन स्वासा जीवहिं कोटि बरीस ||3||
तुम तौ सखा स्याम सुंदर के सकल जोग के ईस ||4||
सूर हमारैं नंदनंदन बिनु और नहीं जगदीस ||5||
''जय श्री राधे कृष्णा ''
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