गोवर्धन गिरिसघनकंदरा , रैन निवास कियो पिय प्यारी ॥

गोवर्धन गिरिसघनकंदरा , रैन निवास कियो पिय प्यारी ॥



गोवर्धन गिरिसघनकंदरा ,
रैन निवास कियो पिय प्यारी ॥

उठ चले भोर सुरत रस भीने ,
नंदनंदन वृषभान दुलारी ॥१॥

इत विगलित कच माल मरगजी,
 अटपटे भूषण रागमणी सारी ॥

उतहि अधरमिस पाग रहिथस, 
दुहूदिश छबि बाढी अति भारी ॥२॥

घूमत आवत रति रणजीते ,
करिणिसंग गजवर गिरिवरधारी ॥

चतुर्भुजदास निरख दंपतिसुख ,
तनमनधन कीनो बलिहारी ॥३॥

जयश्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्

Previous Post
Next Post

post written by:

0 Comments: