
तुम देखो सखी री आज नयन भर हरि जू के रथ की शोभा |
योग यज्ञ जप तप तीरथ व्रत कीजिय तहे जिंहि लोभा || 1 ||
चारुचक्रमणि खचित मनोहर चंचल चमर पताका |
श्वेत छत्र जनुराशि प्राचीदिश उदित भयो निशि राका || 2 ||
श्यामशरीर सुदेश पीतपट शीश मुकुट ओर माला |
मानोदामिनी घन रवि तारा गण उदित एकही काला || 3 ||
उपजत छबि कर अधर शंख ध्वनि सुनीयत शब्द प्रशंसा |
मानहुं अरुण कमल मंडल में कूजत हेँ कलहंसा || 4 ||
आनंदित पितुभ्रात जननीसब कृष्ण मिलन जीय भावे |
सूरदास गोकुल के वासी प्राणनाथ वरपावे || 5 ||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणं
0 Comments: