
सतसंग नहि कियों गफलत में उमर सारी खो दई ,
हरी भजन न कीन्हो बातों में ऊमर सारी खो दई |
बिन सतसंग जगत में प्राणी पशुओं से भी खोटा
भार रूप धरनी पर रहवे पाप करे वे मोटा ||1||
दियो न कछु भी दान हाथ से लियो न हरी का नाम ,
मर करके वो घोडा बनता मुख में पड़े लगाम ||2||
मानव तन अनमोल मिला है तनिक न व्यर्थ गवाओ ,
ज्ञान भक्ति की गंगा बहती सज्जन सब मिल नहाओ ||3||
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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