
श्याम पग पैंजनियाँ बन जाती।
रूनझुन-रूनझुन बजत दिवस निशि
घर-घर अलख जगाती।
जबहिं रिसाई मचल भुई लोटत
पग लगि उनहिं मानती।
ठुमकि-ठुमकि जहँ जात श्याम जू
जहँ-तहँ संग सिधाती।
माधुरी मूरत निरखत क्षण-क्षण
मोहन के रँग राती ।
ग्वाल-बाल संग करत कलेऊ
धेनु चरावन जाती।
रास करत गोपी संग मिलि कै
जमुना नीर नहाती।
मधुर वेणु धुनि सूनि मगन ह्वै
जिया की जरन मिटाती।
नित्य श्याम संग मोद मगन मन
पावन केलि रचाती।
धन्य धन्य यह जनम ह्वै जातौ
पावन पद-रज पाती।
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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